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कन्या के विवाह में अवरोध होने पर सिद्धिप्रद अनुष्ठान

आजकल कन्या के विवाह की समस्या प्राय: प्रत्येक गृहस्थ के समक्ष उपस्थित
है। इसके लिये माता-पिता को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। शाश्त्रों में वर्णित ‘कात्यायनी देवी’ का अनुष्ठान बड़ा ही अनुभूत व सिद्धिप्रद है।
जनसाधारण की जानकारी व जनहित में इस मंत्र के अनुष्ठान की विधि दी जा रही है।इसे नियम व श्रद्धापूर्वक करने या कराने से कन्या के विवाह में आने वाले विघ्न दूर
हते हैं व विवाह सकुशल सम्पन्न हो जाता है।

जप की विधि- यह जप केले के सूखे पत्ते की आसनी पर बैठ कर
कमलगट्टे की माला से किया जाता है।जप के समय कडुआ तेल का दीपक
जलते रहना चाहिये। जिस व्यक्ति को यह अनुष्ठान करना हो उसे लाल या
पीला वस्त्र पहनकर २१ दिन (जप काल) तक ब्रह्मचर्य का पालन करना
चाहिये। इस मन्त्र का जप जपकर्त्ता को पान खाते हुए करना चाहिये। इस जप-
का ४१००० पुनश्चरण है, प्रथम दिन मन्त्र का १००० जाप करें व उसके बाद.
२० दिनों तक प्रतिदिन २००० मन्त्र का जाप करें। जपकाल में प्रतिदिन केले
क वृक्ष का पूजन पंचोपचार विधि से करें। भोग व प्रसाद के रूप में पीले पेड़े
प्रयोग करना चाहिये।

मंत्र –
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ।नन्दगोप सुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः।
अनुष्ठान के अन्त में दशांश हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्राह्मण भोजन कराना चाहिये। भोजन में पीला मिष्ठान्न अवश्य परोसें।
(श्रीहृषीकेश हिन्दी पञ्चाङ्ग,)

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