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ज्योतिष

💞💞💞 #विवाहकबहोगा💞💞💞

कुंडली में विवाह का समय विवाह यानी गृहस्थ जीवन की नई शुरुआत। विवाहोपरान्त व्यक्ति सिर्फ व्यक्ति न रहकर परिवार हो जाता है एवं सामाजिक रूप से जिम्मेदार भी। समाज में उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती है। यह जीवन का एक ऐसा मोड़ होता है जिसके अभाव में व्यक्ति अधूरा रहता है। लेकिन विवाह हर व्यक्ति की किस्मत में नहीं होता। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जातक की कुंडली में मौजूद ग्रहों की दशा से व्यक्ति के विवाह को लेकर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। सिर्फ पूर्वानुमान ही नहीं बल्कि यह भी कि व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सफल रहेगा या नहीं भी। तो आइए जानते हैं कि ऐसे कौन से ग्रह है जो किसी जातक की कुंडली में विवाह योग को दर्शाते हैं।

सप्तम या सप्तम से संबंध रखने वाले ग्रह की महादशा या अंतर्दशा में विवाह होता है।

सप्तमेश की महादशा में पुरुष के प्रति शुक्र या चन्द्र की अंतर्दशा में और स्त्री के प्रति गुरु या मंगल की अंतर्दशा में विवाह होता है।

#सप्तमेश जिस राशि में हो, उस राशि के स्वामी के त्रिकोण में गुरु के आने पर विवाह होता है।

गुरु का गोचर जब सप्तमेश और लग्नेश की स्पष्ट राशि के जोड़ में आए तो विवाह होता है।

सप्तमेश जब गोचर से शुक्र की राशि में आए और गुरु से संबंध बना ले तो विवाह या शारीरिक संबंध बनता है। #सप्तमेश और गुरु का त्रिकोणात्मक संपर्क गोचर से शादी करवा देता है, या प्यार, प्रेम चालू हो जाता है।

चंद्रमा मन का कारक है, और वह जब बलवान होकर सप्तम भाव या सप्तमेश से संबंध रखता हो तो चौबीसवें साल तक विवाह करवा ही देता है।

पंचम या सप्तम स्थान पर यदि अशुभ ग्रहों की यानी कि शनि, राहू और केतू की दृष्टि पड़ती हो तो यह विवाह में बाधक योग भी बना देती है। पूर्ण विश्लेषण के लिए योग्य ज्योतिष की सलाह भी आवश्यक है।

                  #अधिक_जानकारी_हेतु_संपर्क_करें ।

🙇#जयश्रीसीताराम🙇

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