शिवहर स्टेटसे यह 1997 वि. शिव – संहिताके पंचम पटेल के बीच में अध्याय में यह श्लोक वर्णन है _
अयोध्या नन्दिनी सत्यनामा साकेत इत्यपि।
कोसला राजधानी च ब्रह्मपूरपराजिता।।
अष्टचक्रा नवद्वारा नगरी धर्मसम्पदाम्।
दृष्टैवं ज्ञाननेत्रेण ध्यातव्या सरयूस्तथा।।
अयोध्या नगरी के अनेक नाम हैं_ जैसे नंदिनी, सत्या, साकेत, कोसला, राजधानी, ब्रम्हपुरी और अपराजिता । वह अष्टदल पद्मके आकार की है, नौ द्वारोंसे युक्त है। यह धर्मके धनी लोगोंकी नगरी है। इसे ज्ञानके नेत्रोंसे देखकर इसका तथा (साथ ही साथ)सयू नदीका भी ध्यान करना चाहिये।
इस ब्रह्मपुरी अष्टचक्रा नवद्वारा साकेत के नाम ही अयोध्या, अपराजिता, सत्यलोक,सत्यधाम आदि भी है।
अथर्ववेद – मंत्रसंहितामें अयोध्या की महिमा में लिखा है।
पुरं यो ब्राह्मणो वेद यस्या: पुरुष उच्यते।।
यो वै तां ब्रह्मणो वेदामृतेनावृतां पुरम्।
तस्मै ब्रह्म च ब्रह्माश्च चक्षुः प्राणं प्रजां ददुः।।(१०/२/२८-२९)
इस डेढ मंत्रका अन्वय एकमें ही है, अतः साथ ही अर्थ भी दिया जाता है – (यः) जो कोई (ब्रह्मणः) ब्रह्मके अर्थात् परात्पर परमेश्वर, परमात्मा, जगदादिकारण, अचिन्त्यवैभव श्रीसीतानाथ श्रीरामजीके (पुरम् वेद) पुरको जानता है,(उसे भगवान् तथा भगवान् के पार्षद सब लोग चक्षुः,प्राण और प्रजा देते हैं) । किस पुरी को जानने के लिए कहते हो? (यस्याः) जिस पुरीका स्वामी (पुरुषः उच्यते) पुरुष कहा जाता है, अर्थात् जिसका प्रतिदिन नाम स्मरण किया जाता है, उस पुरूष की पुरीको जानने के लिए श्रुति कह रही है।( यः ब्रह्मणः) जो कोई अनन्तशक्तिस्पन्न, सर्वव्यापक, सर्वनियन्ता, सर्वशेषी, सर्वधार श्रीरामजीकी, (अमृतेन आवृताम्) अमृत अर्थात् मोक्षानन्दसे परिपूर्ण, (ताम्र पुरम् वेद) उस अयोध्यापुरी को जानता है,(तस्मै) उसके लिए (ब्रह्म च ब्रह्माः च) साक्षात् भगवान् और ब्रह्म के सम्बन्धी अर्थात् भगवान् के हनुमान्, सुग्रीव, अंङ्गद, मैन्द, सुषेण, द्विविद, दरिमुख, कुमुद, नील, नद, गवाक्ष, पनस, गन्धमादन, विभीषण,जाम्बवान्, और दधिमुख ये प्रधान षोडश पार्षद अथवा नित्य और मुक्त सर्वजीव मिलकर,( चक्षुः) उत्तम दर्शन -शक्ति ( प्राणम् प्रजाम् ददुः) उत्तम प्राणशक्ति अर्थात् आयुष्य और बल तथा संतान आदि देते हैं।
।।श्रीरामभक्ति अंक।।