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भगवान श्रीरामके परम भक्त एवं उपासक भगवान् सदाशिव

भगवान श्रीरामके परम भक्त एवं उपासक —- भगवान् सदाशिव—— हस्तेऽक्षमाला हृदि कृष्ण तत्वं जिह्वाग्र भागे वरराम मन्त्रम् । यन्मस्तके केशवपादतीर्थम शिवं महाभागवतं नमामि ।।

जिनके हस्तकमल में रुद्राक्ष की माला है ,हृदयमे श्री कृष्ण तत्त्व विराजमान है,जिह्वके जिह्वाके अग्रभागमे निरंतर सुंदर राम मंत्र है,जिनके मस्तकपर भगवान् नारायण के चरण कमलो से निकली गंगा विराजमान है,ऐसे महाभागवत,परम भक्त,उपासक श्री शिवजीको नमस्कार है।

तीनों लोकोंमें यदि श्रीराम का कोई परम भक्त, परमोपसक है तो वह वैष्णवोंमें अग्रगण्य वैष्णवाचार्य आदि-अमर कथावक्ता , वैष्णव कुलभूषण,शशाङ्क-शेखर आदिदेव महादेव ही हैं।श्री शिवजी महा मन्त्र ‘श्रीराम ‘ का अहर्निश जप करते रहते है ।

भगवान् शंकर रामायण के आदि आचार्य हैं।उन्होंने राम-चरित्र का वर्णन सौ करोड़ श्लोकों में किया है।श्री शिवजी ने देवता ,दैत्य और ऋषि मुनियोंमें श्लोकों का समान बँटवारा किया तो हर एक के भागमें तैतीस करोड़, तैतीस लाख ,तैतीस हजार ,तीन सौ तैतीस श्लोक आये। कुल निन्यानबे करोड़, निन्यानबे लाख ,निन्यानबे हजार नौ सौ निन्यानबे श्लोक वितरित हुए। एक श्लोक शेष बचा ।देवता, दैत्य ,ऋषि- ये तीनों एक श्लोक के लिये लड़ने-झगड़ने लगे । यह श्लोक अनुष्टुप् छ्न्दमें था। अनुष्टुप् छ्न्दमें बत्तीस अक्षर होते हैं। श्रीशिवजी ने प्रत्येक को दस-दस अक्षर वितरित किये। तीस अक्षर बँट गए तथा दो अक्षर शेष बचे । तब शिवजीने कहा – ये दो अक्षर अब किसीको नही दूँगा । ये अक्षार मैं अपने कण्ठमे ही रखूँगा । ये दो अक्षर ही ‘रा’ और ‘म’ अर्थात् रामका नाम है,जो वेदोंका सार है।

राम-नाम अति सरल है ,अति मधुर है, इसमें अमृतसे भी अधिक मिठास है। यह अमर मन्त्र है,शिवजीके कण्ठ तथा जिह्वाग्रभाग में विराजमान है,इसीलिये जब सागर-मंथनके समय हालाहल -पान करते समय शिव-भाक्तोमें हाहाकार मच गया, तब भगवान् भूतभावन भवानीशंकर ने सबकोसान्त्वना-आश्वासन देते हुए कहा –

श्रीरामनामामृतमन्त्रबीजं संजीवनी चेन्मसि प्रविष्टा।
हालाहलं वा प्रलयानलं वा मृत्योर्मुखं व विशतां कुतो भी: ।। (आनन्दरामायण, जन्मकाण्ड ६।४३ )

भगवान् श्रीरामका नाम सम्पूर्ण मन्त्रोका बीज मूल है, वह मेरे सर्वाङ्गमें पूर्णतः प्रविष्ट हो चुका है, अतः हालाहल विष हो, प्रलयानल-ज्वाला हो या मृत्युमुख ही क्यों न हो मुझे इनका किंचित् भी भय नहीं है। यह कहते हुए शिवजी विष -पान कर गये।वह विष अमृत बन गया। उसी दिनसे उनका नाम ‘नीलकण्ठ’ पड़ गया। इस कारण और सब ‘देव’ है और शिवजी ‘महादेव’ है।

महामंत्र जोइ जपत महेसू ।
(रा.च.मा.१।११।३)

वह राम-नाम ही है जिसे वे माता पार्वती के साथ निरन्तर जपते रहते है । यथा –
अहं भवन्नाम गृणन् कृतार्थो वसामि काश्यामनिशं
भावन्या । मुमूर्षमाणस्य विमुक्तयेऽहं दिशामि मन्त्रं तव रामनाम ।। (अध्यात्मरामायण ६।१५।५२)

यही नहीं आज भी काशीमें विराजमान भगवान् शिव मरणासन्न प्राणियोंको मुक्ति दिलानेके लिये उनके कानमें तारक मन्त्र- रामनाम का उपदेश देते हैं।अनन्त जीवोंको भी तारते है । यथा-

रामनाम्ना शिवः कश्यां भूत्वा पूतः शिवः स्वयम्।
स निस्तारयते जीवराशीन् काशीश्वर: सदा ।।
(शिवसंहिता २।१४)

भगवान् शिव अपने प्राण-धन भगवान् श्रीरामका अहर्निश निरन्तर नाम-स्मरण करते रहते है।श्री राम नाम तारक तथा ब्रह्मसंज्ञक है और ब्रह्महत्यादि सम्पूर्ण पापोंका विनाशक है।यथा-

श्रीरामेति परं जाप्यं तारकं ब्रह्मसंज्ञकम् ।
ब्रह्महत्यादिपापघ्नमिति वेदविदो विदुः ।।

भगवान् शिव श्रीरामजी तथा उनके नामकी महिमा पार्वतीजीको बताते हुए कहते हैं-

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ।।
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम् ।।
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ।।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्त्र नाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ।।
(रामरक्षास्तोत्र ३५-३८)

‘ आपत्तियोंको हरनेवाले तथा सब प्रकारकी सम्पत्ति प्रदान करनेवाले लोकाभिराम भगवान् रामको मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ। ‘राम-राम ‘ ऐसा घोष करना सम्पूर्ण संसरबीजोंको भून डालनेवाला, समस्त सुख-सम्पत्तिकी प्राप्ति करानेवाला तथा यमदूतोंको भयभीत करनेवाला है। राजाओंमें श्रेष्ठ श्रीरामजी सदा विजयको प्राप्त होते है। मैं लक्ष्मीपति भगवान् रामका भजन करता हूँ। जिन रामचंद्रजीने सम्पूर्ण राक्षससेनका ध्वंस कर दिया था, मैं उनको प्रणाम कारत हूँ।
रामसे बड़ा और कोई आश्रय नहीं है।मैं उन रामचन्द्रजीका दास हूँ ।मेरा चित्त सदा राममें ही लीन रहे;हे राम ! आप मेरा उद्धार कीजिये ।श्रीमहादेवजी पर्वतीजीसे कहते है – हे सुमुखि!

रामनाम विष्णुसहस्त्रनामके तुल्य है। मैं सर्वदा राम राम राम -इस प्रकार मनोरम रामनाममें ही रमण करता हूँ ।’
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