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मूल नक्षत्र फल

मूलेप्टो मूलबृक्षत्य घटिका: परिकीर्तिता ।
स्तम्भेषु षष्टघटिकास्त्वचि चैकादश स्मृता ||

शाखायां च नव प्रोक्तोपत्रे प्रोक्ताश्चतुर्दश पुष्पेपञ्च फले वेदाःशिखायां चत्रयमृता ॥
मूले नाशोहि मूलस्य स्तम्भे हानिर्धनक्षयः । त्वचिभ्रातुवनाशश्च शखायां मातृपीडनम् ||
परिवारक्षा पत्रे पुष्पेमन्त्री चभूपतिः | फले राज्यं शिखायांस्याअल्पजीवीचबालकः॥
टीका- अबमूल संज्ञक नक्षत्र के विचारने की रीतिमूलक से कहते हैं। मूल वृक्ष बनाकर ८ घड़ी जड़ में धरे ६ स्तम्भ में ११ त्वचा में नौ शाखा में १४ पत्र में ५ पुष्प में ४ फल ३ शिखा में इस प्रकार ६० घड़ी धरिये । फिर उसका फल कहै । जो मूल की ८ घड़ी मैं बालक का जन्म हो तो मूल नाश हौ । स्तम्भ की ६ घड़ी में होय तो धनहानि । त्वचा ११ घड़ी में होय तो भ्राता का नाश । शाखा की नौ घड़ी में होय तो माता को पीड़ा करे । पत्तों की १४ घड़ी में होय परिवार का नाश । फूलों की ५ घड़ी में होय तो राजा का मंत्री हो । फलों को ४ घड़ी में जन्म हो तो राजा हो। अथवा
वंश में या देश में श्रेष्ठ होय । शिखा की ३ घड़ी में जन्म हो तो आयु अल्प पावे अर्थात उमर थोड़ी हो ।

।।अथ मूल नक्षत्र मंत्रः।।

ॐ मातेव पुत्रम्पृथिवी पुरीष्प मग्नि ॐ स्वेयो नाव
मारुषा तां विश्वेदेवऋतुभिः संविदानः प्रजापति
विश्वकर्मा विमुचतु ॥ १ ॥

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