को वा दरिद्रो हि विशाल तृष्णः
श्रीमांश्च को यस्य समस्ति तोषः ।
जीवन्मृतो कस्तु निरुद्यमो यः
कोवाऽमृतः स्यात्सुखदा निराशा ॥ ५॥
प्रश्न :- दरिद्र कौन है ?
उत्तर:- भरी तृष्णा वाला |
प्रश्न :- और धनवान् कौन है ?
उत्तर:- जिसे सब तरह से संतोष है |
प्रश्न :- (वास्तव में) जीते-जी मरा कौन है ?
उत्तर:- जो पुरुषार्थहीन है |
प्रश्न :- और अमृत क्या हो सकता है ?
उत्तर:- सुख देने वाली निराशा (आशा से रहित होना)
(स्वामी श्रीशंकराचार्यरचित ‘मणिरत्नमाला’)