ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवानद्वैतपरमानन्द आत्मा ।
यः सच्चिदानन्दाद्वैतैकचिदात्मा भूर्भुवः सुवस्तस्मै
वै नमो नमः ॥
ऊं जो जगत्प्रसिद्ध श्री रामचंद्रजी हैं,वह निश्चय ही भगवान (षड्विध ऐश्वर्यसे संपन्न ) हैं,अद्वितीय परमानन्द स्वरूप हैं। जो सच्चिदानंद अद्वितीय एकचित्- स्वरूप हैं, भूः,भुवः, स्वः_ यह तीन लोक हैं, उन श्रीरामचंद्रजी को निश्चय ही मेरा बारंबार नमस्कार है।
दाशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि। तन्नो रामः प्रचोदयात्।
दशरथनंदन भगवान् रामके तत्व को हम अच्छी तरह जानते हैं। भगवती सीताके प्राणवल्लभ भगवान् रामभद्रका हम निरंतर ध्यान करते हैं। वह भगवान् राम कृपापूर्वक हमें विशुद्ध बुद्धि प्रदान कर अपनी ओर आकृष्ट करते रहे। शुद्ध प्रेरणा देते रहें।
श्रीमद्राघवपादपद्मयुगलं पद्मार्चितं पद्मया पद्मस्थेन तु पद्मजेन विनुतं पद्माश्रयस्याप्तये।
यद्वेदैश्च नुतं सुखैकनिलयं सर्वाश्रयं निष्क्रियं शश्वच्छंकरशंकरं मुहुरहो सन्नौमि तल्लब्धये।।
भगवती पद्मालया कमलाने पद्मपुष्पोंके द्वारा जिन रघुनंदन भगवान् श्रीरामचंद्रजी के पादपद्मोंकी अर्चना की तथा भगवान विष्णु के नाभिपद्मपर स्थित ब्रह्माजीने भी भगवती लक्ष्मी की कृपा कटाक्षकी प्राप्तिके लिए जिन पादपद्मोंका स्तवन वंदन किया था, जिन चरणोंकी वेदोंद्वारा भी निरंतर स्तुति की जाती है, और जो समस्त सुख एवं आनंदके एकमात्र आश्रय स्थल हैं, तथा समस्त प्राणीमात्रके लिए शरण्य हैं, जो कुटस्थस्वरूप हैं और जो समस्त कल्याणके स्वरूप भगवान शंकर का भी नित्य कल्याण करने में समर्थ हैं, मैं परमतत्वकी प्राप्ति के लिए उन पदों की बार बार वंदना करता हूं।
तर्तुं ससृतिवारिधिं त्रिजगतां नौर्नाम यस्य प्रभोर्येनेदं सकलं विभाति सततं जातं स्थितं संसृतम्।
यश्चैतन्यघनप्रमाणविधुरो वेदान्तवेद्यो विभुस्तं वन्दे सहजप्रकाशममलं श्रीरामचंद्रं परम्।।
जिन भगवानका नाम तीनों लोकोंमें संसारसमुद्रसे पार होने के लिए नौका_रूप है,जिनसे उत्पन्न और पालित होकर यह संपूर्ण संसार सदैव शोभा पाता है, जो चैतन्यघनस्वरूप एवं प्रमाणसे परे हैं, वेदांतशास्त्रके द्वारा जानने के योग्य और सर्वत्र व्यापक हैं, उन सहज प्रकाश रूप निर्मल परमात्मा श्री रामचंद्र जी को मैं प्रणाम करता हूं।
रक्ताम्भोजदलाभिरामनयनं पीतांबरालङ्कृतं श्यामाङ्गं द्विभुजं प्रसन्नवदनं श्रीसीतया शोभितम् ।
कारुण्यामृतसागरं प्रियगणैर्भ्रात्रादिभिर्भावितं वन्दे विष्णुशिवादिशेव्यमनिशं भकृतेष्टसिद्धिप्रदम्।।
रक्तकमलदलके समान सुंदर नेत्रयुक्त, पीले वस्त्रसे अलंकृत, श्याम – शरीर, द्विभुज, प्रसन्नमुख, भगवती श्रीसीताके साथ सुशोभित, कृपापूर्ण अमृत के समुद्र, अपने प्रियमित्रों तथा बंधुजनोंद्वारा सद्भावसे सुशोभित, विष्णु, शिव आदि देवताओंसे भी अहर्निश सेव्यमान और अपने उपासकों को सभी अभीष्ट सिद्धियां प्रदान करने वाले भगवान श्रीराम की मैं वंदना करता हूं।
वामे भूमिसुता पुरश्च हनुमान् पश्चात् सुमित्रासुतः
शत्रुघ्नो भरतश्च पार्श्वदलयोः वाय्वादि कोणेषु च।
सुग्रीवश्च विभीषणश्च युवराट् तारासुतो जांबवान्
मध्ये नील सरोज कोमळरुचिं रामं भजे श्यामळं॥
जिनके बायें भागमें श्रीसीताजी, सामने हनुमान, पीछे लक्ष्मण , दोनों बगल शत्रुघ्न और भरत तथा वायव्य,ईशान और अग्नि एवं नृत्य कोण में क्रमशः सुग्रीव, विभीषण, और तारा पुत्र युवराज अंगद और जाम्बवान् हैं ,उनके बीच विराजमान श्यामकमलसदृश मनोहर कांति वाले परम पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी की स्तुति करता हूं।
भक्तिर्मुक्तिविधायिनी भगवतः श्रीरामचंद्रस्य हे लोकाः कामदुघाङ्घ्रिपद्मयुगलं सेवध्वमत्युत्सुकाः।
नानाज्ञानविशेषमन्त्रविततिं त्यक्त्वा सुदूरे भृशं रामं श्यामतनुं स्मरारिहृदये भान्तं भजध्वं बुधाः।।
अरे लोगों! भगवान श्रीरामचंद्रजीकी भक्ति ही मोक्ष देने वाली है । अतः कामधेनु रूप उनके चरण कमलों की अति उत्सुकता से सेवा करो। हे बुद्धिमान लोगों! इन विविध विज्ञानवार्ताओं और मंत्रविस्तार को अत्यंत दूर _ अलग रख तुरंत ही श्रीशंकर के हृदय में शोभा पाने वाले श्याम शरीर |