सदसि वसन्तं सुमृदु हसन्तं ,कपिषु लसन्तं धुरिसन्तम् ।
जितहरिदन्तं कृतविपदन्तं ,युधि निनदंन्तं श्रितसन्तम्।।
सदनुभवन्तं सततमवन्तं, प्रभुवरवन्तं प्रभवन्तम्।
स्वहृदि रमन्तं सुरतनुमन्तं ,स्मर परमं तं हनुमन्तम्।।
हम सब उन देव विग्रह श्री हनुमान जी का स्मरण करें, जो सदा अपने हृदय में रमण करने वाले हैं,( संतोंकी) सभामें निवास करते हैं, मृदु- मधुर हास्य युक्त हैं, वानरों के मध्य सुशोभित हैं, सज्जनों की धुरी हैं, दिग्विजयी हैं, विपत्तिनिवारक हैं, युद्ध में निनाद करने वाले हैं, संतों के आश्रित हैं, सत् – ब्रह्म (भगवान श्रीराम) के ध्यान में रत है, सदा सबके रक्षक हैं, वर दायक है तथा परम कल्याण कारक है।