मुर्द्रास्यनेत्रगलकासयुगं च बाहु-हुज्जानु गुह्यपदमित्यहि देहभागः ॥ वाणाद्रि नेत्रहुतभुक श्रुति नाग रुद्रं -षड् नंद पंच शिरसः क्रमशस्तुनाधड्यः ॥ १ ॥
राज पितृक्षयो मातृनाशः काम- क्रियारतिः ।
पितृभक्तो बली स्वघ्नम्त्यागी भोगी धनी कमात् ॥ २ ॥
टीका-श्लेषा नक्षत्र के जिस भाग में बालक का जन्म हो
उसका फल कहना | श्लेषा नक्षत्र की पहली ५ घड़ी में बालक
का जन्म हो तो राज प्राप्ति । दूसरे भाग की ७ घड़ी में पिता
को कष्ट । तीसरे भाग की २ घड़ी में माता को कष्ट । चौथे
भाग की ३ घड़ी में पर स्त्री रत । पाँचवें भागकी ४ घड़ीमें
पिता का भक्त । छटवें भाग की ८ घड़ी में बलवान | सातवें
भाग को ११ घड़ी में आत्मघाती । आठवें भाग की ६ घड़ी
में त्यागी । नवमें भाग की ९ घड़ी में भोगी । दशवें भाग की
५ घड़ी में धनवान् । इस प्रकार ६० घड़ी के १० भाग करके
फल कहै ।
जो इन ६ नक्षत्रों में से किसी नक्षत्र में बालक का जन्म हो तो इनका २८००० मन्त्र का जाप करवाये या जितनी श्रद्धा हो दशवें दिन साधारण दसठोन करने के बादऔरजबवह नक्षत्र २८ दिन में फिर आवे जिस नक्षत्र का मन्त्र जपा हो उस दिन शान्ति करे और जितना मन्त्र जपा हो उसके दशांश का हवन करे और ७ या १४ या २१ या २८ ब्राह्मण जिमावे तब मूल आदि का दोष दूर होता है नहीं तो विघ्न होता है।
ॐ नमोस्तुसर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु ।
ये अन्तरक्षे ये दिवितेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ॥ २ ॥