श्री राम जी की कथा से जो लाभ है, वह रामजी के संग से नहीं इसीलिए श्री हनुमान जी ने यही वर मांगा कि जब तक पृथ्वी पर श्रीरामकथा रहे, तब तक मैं पृथ्वी पर ही रहूं।
यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले।
तावच्छरीरे वत्स्यन्तु प्राणा मम न संशयः।।
वीर श्री राम ! इस पृथ्वी पर जब तक श्रीरामकथा प्रचलित रहे, तब तक निसंदेह मेरे प्राण इस शरीर में ही बसे रहें।