अयोध्या भगवान श्री रामचंद्र जी की यह पवित्र नगरी है इसको सभी लोग जानते हैं इस का माहात्म्य भी किसी से छिपा नहीं है। भगवान के बैकुंठ चले जाने के उपरांत प्रभु श्रीरामचंद्रजी ने अयोध्या भूमि पर श्री हनुमान जी महाराज को ही राजा के रूप में नियुक्त किया था जो आज भी हनुमानगढ़ी मंदिर में राजा स्वरूप में श्री हनुमान जी महाराज की पूजा होती है। श्री हनुमानगढ़ी मंदिर की स्थापना सैकड़ों वर्ष पूर्व श्रीअभयरामदासजी महाराज ने करवाया था।
जिसका संचालन अखिल भारतीय श्रीपंच रामानन्दीय निर्वाणी अखाड़ा के तरफ से किया जाता है । जहां पर विधिवत भोग-राग पूजा पाठ इत्यादि होता है, यह मंदिर सुबह ब्रह्म बेला में ही खुल जाता है और देर रात्रि तक भक्तों के लिए खुला रहता है। इस मंदिर में प्रमुख रूप से चार आरतियां की जाती हैं जो प्रातः काल, मध्यान्ह काल, सायंकाल एवं शयन आरती के रूप में प्रचलित है।
श्रीहनुमानगढ़ी मंदिर ५२बीघे भूमि में स्थित है,जिसके चारों तरफ साधु संतों के निवास स्थान बने हुए हैं उनमें हजारों साधु संत रहकर भगवान का भजन पूजन करते हैं । हनुमानगढ़ी में गौसेवा, संतसेवा, विद्यार्थियों की सेवा, एवं बंदरों की नित्य नियमित चलती हैं।
श्रीहनुमानगढ़ी में श्रीहनुमानजी के जन्मोत्सव कार्यक्रम कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्थी से कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी तक सायंकाल श्रीहनुमत जन्मोत्सव पर विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम विशिष्ट विद्वानों द्वारा प्रवचन तथा रात्रि 12:00 बजे हनुमत जन्मोत्सव विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। यहां पर अन्यपर्व भी जैसे श्रीराम नवमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्री विजयादशमी , मकर संक्रांति,( खिचड़ी ) होलिकोत्सव आदि पर्व पर विशेष भोज भंडारा इत्यादि किया जाता है।
राजद्वारे हनूमाँस्तु वायुपुत्रोमहाबलः ।महावीर इति ख्यातः सर्वलोकेषु पूजितः ॥
रामकोटके प्रधान राजद्वारपर वायुनन्दन श्रीहनुमान्जी विराजमान
हैं,जो महाबलवान्,वीरशिरोमणिके रूपमें लोकमें प्रसिद्ध हैं;
सब लोकों तथा सब देशोंमें इनकी पूजा होती है ॥
तस्य पूजा प्रकर्तव्या नरैर्नारीभिरेव च ।
इन महावीरजीका पूजन-दर्शन नर-नारियोंको अवश्य करना चाहिये।
मङ्गले मङ्गले देवि यात्रा स्यात् प्रातिमासिकी।
हे देवि! प्रत्येक मासके प्रत्येक मंगलवारको यहाँकी यात्रा
करनी चाहिये।
तस्य दर्शनमात्रेण करस्था: सर्वसिद्धयः ।अञ्जनीनन्दनं देवं जानकीशोकनाशनम् ॥
कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लङ्काभयङ्करम् ।।इति मन्त्रं समुच्चार्य प्रणमेद् दण्डवत् सुधीः॥
इन हनुमान जी के दर्शनमात्रसे सभी प्रकारकी सिद्धियाँ करतल में
आ जाती हैं। ‘अंजनी अम्बाको आनन्द देनेवाले, श्रीजानकीजीके
शोक का नाश करनेवाले, वानरोंके अधिपति, अक्षकुमारको मारनेवाले
तथा लंकापुरीको भय देनेवाले देव हनुमानजीकी मैं वन्दना करता
हूँ।’ बुद्धिमान् यात्री इस मन्त्रको पढ़कर दण्डके समान भूमिपर
गिर करके श्रीहनुमान्जीको प्रणाम करे॥
धूपं दीपं च नैवेद्यं दत्वा चैव विधानतः ।
ततः प्रविश्य दुर्गं तु पूजयेद् रत्नमण्डपम् ॥
श्रीहनुमान्जीका विधानपूर्वक धूप, दीप, नैवेद्यादिसे पूजन
करके [उनकी आज्ञा लेकर] दुर्ग (रामकोट)-के भीतर सभी मंदिरों में प्रवेश
करे और उनका पूजन करें।