कान्हा, कान्हा आन पड़ी मई तेरे द्वारबूँद ही बूँद मई प्यार की चुनकर
प्यासी रही पर लाई हू गिरधर
टूट ही जाए आश् की गगर मोहना
ऐसी कंकारिया नही मार कान्हा, कान्हा आन पड़ी मई तेरे द्वार
कान्हा, कान्हा आन पड़ी मई तेरे द्वारमाटी करो या स्वर्ग बना लो
टन को मेरे चर्नो से लगा लो
मुरली साँझ हाथो मे उठा लो
कच्चू अब है कृशन मुरारीकान्हा, कान्हा आन पड़ी मई तेरे द्वार
मोहे चाकर साँझ निहार
चाकर साँझ निहार, चाकर साँझ निहार
कान्हा, कान्हा आन पड़ी मई तेरे द्वार
तेरे द्वार, कान्हा, कान्हा आन पड़ी मई तेरे द्वार