त्रेता युग में भगवान श्री राम का प्राकट्य श्री अयोध्याजी में हुआ यह निर्विवाद सत्य है। श्री राम जन्मभूमि का स्थान अयोध्या में स्थित है।
इसके दर्शन के महत्व में स्कंद पुराण में लिखा है कि–
यद्दृष्ट्वा च मनुष्यस्य गर्भवासजयो भवेत्।
विना दानेन तपसा विना तीर्थैर्विना मखै।।
रामजन्म-भूमिके दर्शनमात्रसे बिना दानेके, बिना तपके ,बिना तीर्थयात्राके तथा बिना यज्ञ किये ही मनुष्य की मुक्ति हो जाती है, उसे गर्भ हवास की प्राप्ति नहीं होती।
नवमीदिवसे प्राप्ते व्रतधारी हि मानवः ।
स्नानदानप्रभावेण मुच्यते जन्मबन्धनात्।।
रामनवमी के दिन रामनवमी- व्रत करनेवाला पुरुष स्नान,दान और तप शके प्रभावसे जन्म- मरण के बन्धनसे छुटकारा पा जाता है।
कपिलागोसहस्राणि यो ददाति दिने -दिने।
तत्फलं समवाप्नोति जन्मभूमेः प्रदर्शनात्।।
प्रतिदिन हजारों कपिला गौके दानसे जो फल मिलता है, वही फल जन्मभूमि के दर्शन मात्र से मिल जाता है।
आश्रमे वसतां पुंसां तापसानां च यत्फलम्। राजसूयसहस्राणि प्रतिवर्षाग्निहोत्रतः।।
नियमस्थं नरं दृष्ट्वा जन्मस्थाने विशेषतः। मातापित्रोर्गुरूणां च भक्तिमुद्वहतां सताम्।।
तत्फलं समवाप्नोति जन्मभूमेः प्रदर्शनात्।।
आश्रममें निवास करनेवाले तपस्वीजनोंको जो फल मिलता है, यावज्जीवन अग्निहोत्र करनेवालोंको जो फल मिलता है, माता-पिता और गुरु की सदा भक्ति करने वालों तथा यम-नियमादि व्रतों के पालन करनेमें तत्पर संयमी सात पुरुषों के दर्शन से जो फल मिलता है, वही फल जन्मभूमिके दर्शनमात्र से मिलता है।
(सनातन सेवक)